प्रेमम : एक रहस्य! (भाग : 22)
सुबह की पहली किरण अनि के चेहरे को छू रही थी, उसे अपने आसपास हलचल महसूस होने लगी थी, वह अब तक बेसुध होकर सोया हुआ था, उसे यह तक एहसास न था कि वह इस वक़्त कहाँ, कैसे और किस हाल में है।
"अरे उस पागल को देखो कैसे खड़ी बाइक पर ही पसरा हुआ है, कोई लाज लिहाज ही न बचा जमाने में!" अनि की हालत किसी एक ने व्यंग्य किया।
"अरे छोड़ो कहीं से पी पा के पड़ा होगा, साला शराबी लोग शराब नहीं छोड़ सकता, देखो कैसे लटका हुआ है।"
"अरे छोड़ो ने हमें क्या, ये जो भी रहा ठहरा, हमे तो काम है न भई!"
अनि के कानों में कुछ स्वर गूंज रहे थे। वह झेंपते हुए उठा और आँखे मलने लगा। उसके कपड़े काफी बुरी तरह फ़टे हुए थे। उसकी हालत पूरी तरह मवालियों की तरह हो रखी थी, चेहरे पर अब भी जख्मों के निशान थे।
"तुम्हें यही जगह मिली थी?" अनि ने क्रेकर से गुस्से से पूछा।
"उस ट्रक धमाके के बाद तुम सो गए थे, किसी तरह मैं यहां तक लाया। अब अगर मैं तुम्हारें सोने पर चलता और गिरने पर हड्डियां पसलियां टूटती तो मुझे इल्जाम देते, इसलिए मैं यही खड़ा हो गया।" क्रेकर ने अपनी चिरपरिचित मशीनी स्वर में कहा।
"बेड़ागर्क!" अनि बड़बड़ाया।
"कैसा नर्क?" क्रेकर का स्वर उभरा।
"अबे ये मेरा स्टाइल है इसे तो कॉपी मत कर!" अनि झेंपते हुए बोला, अब तक उसकी आंखों से नींद काफूर हो चुकी थी।
"आप ही से सीख रहा हूँ सर! मेरे अंदर लर्निंग का प्रोग्राम भी फ़ीट है, जिससे मैं अपनी मर्ज़ी से भी चल और बोल सकता हूँ।" क्रेकर ने संयत स्वर में उत्तर दिया।
"ठीक है मेरे बाप, अभी यहां से चल वरना ये लोग पागल पागल बोलकर पागलखाने चले जायेंगे। फिर इतना बेड कहा खाली मिलेगा?" अनि ने कहा, मगर क्रेकर जस का तस खड़ा रहा। "क्या हुआ?"
"सॉरी सर! मगर मैं बस एक प्रोग्राम हूँ, मैं किसी का माँ-बाप नहीं हो सकता।" क्रेकर समझाते हुए बोला।
"अबे यार!" अनि का मूड खराब होने लगा। "चल।यहां से!" अनि ने उससे कहा, क्रेकर स्टार्ट हुआ और वे मसूरी मैन मार्किट की ओर बढ़ने लगे।
'अहह! पूरा बदन बहुत तेज दुख रहा है, साले पता नहीं क्या खाकर आये थे, मिस्टर बर्बादी हमें बर्बाद होने को छोड़कर पता नहीं किधर निकल लिए। उधर उस खाली स्थान भैया के दिमाग में हमारा नाम भर गया जिस कारण से अब वो मुझे दुनिया से खाली करने में पड़े हुए हैं। समझ नहीं आता उसने इतनी आसानी से मेरी कुंडली कैसे निकाल ली। कहीं मिस प्याऊ और पप्पा जी किसी खतरे में तो नहीं?
सच कहूं तो मेरे बुद्धि का फ्यूज बल्ब तोड़ फोड़ दिया है खाली स्थान भैया ने। अब मैं उनपर ऐतबार नहीं कर सकता, जल्दी जल्दी से मुलाकात करके उनके अंतिम संस्कार की तैयारी करनी होगी।
तो यारों मैं हूँ आपका प्यारा हनी बनी अनि! मालूम है थोड़ा लेट हूँ पर क्या करूँ बैंड बजी हुई है, पर यहां बारात की नहीं मैय्यत की तैयारी हो रही है। चीफ ने कहा था दिल्ली खतरे में है, पर फिलहाल तो मेरे ऊपर खतरे के क्षुद्रग्रह मंडरा रहे हैं, मेरा मतलब खतरे के बादल हैं ना वहीं.. पर खतरा उससे भी कहीं ज्यादा बड़ा है। ये खाली स्थान एक बार सामने मिल जाये तो भेजा खाली कर दूंगा मैं उनका और फिर गाय का गोबर भर दूंगा। सेहतमंद होता है...।
जिये तो जिये कैसें.. सब पीछे पड़े मेरे। चिल मारो यार अपुन सबका हिसाब बराबर करके ही रहेगा, लो अब पहुंच गया मार्किट अब अपना मुखड़ा मेरा मतलब ये चाँद का टुकड़ा तो ठीक कर लूं। कहीं मेरी ऐसी शक्ल देख के कोई चुड़ैल प्यार में पड़ गयी तो मेरा ब्रह्मचर्य खतरे में पड़ जायेगा!
जालिम संसार, जालिम जमाना, हे ऊपरवाले बन्द कर मुझपे सितम कराना।'
क्रेकर को वहीं रोककर वह सामने की एक रेडीमेड कपड़ो की शॉप में दनदनाते हुए घुस गया। वहां जाकर वह कुछ नए कपडे खरीदने लगा, थोड़ी देर बाद वह मेडिकल स्टोर पर जाकर दवाइयां खरीदने में बिजी था फिर एक छोटे से ढाबे पर जा धमका, वह अपने पेट पर ऐसे हाथ फिरा रहा था मानो जैसे सदियों का भूखा हो। वेटर के मेन्यू दिखाते ही कार्ड ऐसे झपटकर छीन लिया जैसे भेड़िया अपना शिकार छीन रहा हो, यह देखकर वेटर घबरा गया, अनि बस दांत निपोरे खीस-खीस कर हँसता रहा।
"क्या चाहिए सर!" वेटर ने थोड़ी देर वैट करने के बाद पूछा। मगर अनि उसकी बातों को अनसुना करता हुआ मेन्यू पढ़ने में व्यस्त रहा।
"सर!" वेटर ने दुबारा पूछा तो वह उसकी ओर ताकते हुए आँखे गोल कर घूरने लगा।
"ये सब ला दो?" अनि ने बेपरवाही से कहा।
"क्या सब?" वेटर हैरान हुआ, अब तक वह इसे पागल गुंडा मवाली समझकर मन ही मन पचास गालियां दी चुका था।
"हाँ थोड़ा थोड़ा! दरअसल मैं फिक्स नहीं कर पा रहा कि क्या छोड़ू क्या नहीं!" अनि ने मासूम सी सूरत बनाते हुए कहा। वेटर को अब पक्का हो गया कि यह बिल्कुल सनकी आदमी है, इसलिए उसने अनि से उलझना ठीक नहीं समझा। थोड़ी ही देर में पूरी टेबल खाने की चीजो से सजी हुई थी, अनि सभी में से एक एक कौर खाते हुए मधुर सिसकारियां ले रहा था, जैसे उसे परमानन्द प्राप्त हो रहा हो।"
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अरुण तेजी से दौड़ते पहाड़ी पर चढ़ता जा रहा था! सुबह की ताजगी उसे और अधिक स्फूर्ति से भर रही थी मगर उसके चेहरे पर गुस्सा साफ नजर आ रहा था। वह काफी ऊपर तक चढ़ आया था, दौड़ते हुए ऊँचाई तय करने के कारण उसकी टाँगे दुखने लगी। वह लंबी लंबी साँसे लेते हुए तेजी से ऊपर चढ़ने लगा।
अचानक उसके कानों में कोई अजीब सा स्वर सुनाई दिया, जिसका जंगल में सुना जाना सामान्य नहीं था। वह चारों ओर नजर घुमाकर देखने लगा मगर फिर भी उसे कुछ नजर न आया। उसने ऊपर की देखा, पहाड़ी की चोटी जैसे बादलों को छू रही थी, काफी देर तक दौड़ते-कूदते चढ़ने के बाद भी वह अभी भी काफी नीचे था। यहाँ से ऊपर की चट्टानें बिल्कुल खड़ी नजर जिनपर दौड़कर चढ़ पाना सम्भव नहीं था, अरुण ने फिर भी रास्ता नहीं बदला, वह आज पहाड़ को चुनौती देने पर तुला हुआ था।
उसे दुबारा वही स्वर सुनाई दिया, मगर इस बार वह स्पष्ट था, यह किसी ट्रक का हॉर्न था, इसका मतलब यह था कि सड़क कहीं पास ही होगी, अरुण अब सीधा ऊपर चढ़ने के बजाए क्षैतिजतः समानांतर सरकते हुए आगे बढ़ने लगा। अचानक ही उसके मन में पता नहीं क्या ख्याल आया वह फिर से सीधे ऊपर चढ़ने लगा।
चट्टाने बहुत नुकीली थीं, मगर शायद उनकी धार अरुण के मजबूत इरादों जितनी तेज न थी। थोड़ी देर तक काफी मशक्कत करने के बाद वह ऊपर की ओर देखा, अब वह आधा पहाड़ चढ़ चुका था, ऊपर की पहाड़ी भी सामान्य थी, वहां काफी सारे पेड़-पौधे थे। अब वह उस जल-स्त्रोत से सैकड़ो फ़ीट ऊपर चढ़ चुका था। वहां से नीचे देखने पर किसी सामान्य मनुष्य की हालत ऐसी हो सकती थी कि वह गश खाकर गिर जाता मगर अनि वहां बैठकर चारों ओर देख रहा था, उसकी साँसे अब सामान्य हो चुकी थी वह फिर से चढ़ाई करने को तैयार था।
काफी देर तक लगातार जद्दोजहद के बाद अरुण पहाड़ी की चोटी पर पहुँच चुका था, यहां से उसे सबकुछ साफ-साफ नजर आ रहा था। इसी पहाड़ी के ठीक नीचे सड़क थी जो ज्वाला जी मंदिर की ओर जा रही थी। इस स्थान से बेनोग पर्वत साफ साफ दिखाई दे रहा था, इसका मतलब वह अब तक शहर से काफी दूर आ चुका था।
"ये साला मैं निकलने के चक्कर में उल्टा और फंस गया।" खीझता हुए अरुण ने खुद से ही कहा।
"साला कमीना! पता नहीं कहा से यह सब ऑपरेट कर रहा है, एक बार मेरे हाथ तो लग जा उसे ऐसी मौत दूंगा कि मौत भी रहम की भीख मांगेगी।" अरुण उस पहाड़ी से चिल्लाया। उसके स्वर में क्रोध के आवेश के साथ आत्मग्लानि भी मिश्रित थी।
"अगर वो मुझपर अब भी नजर रखे हुए है तो कैसे? और बिना नजर रखे कोई ऐसी चाल चल भी सकता है? अरे ये क्या…?" अचानक अनि की नजर नीचे जा रहे ट्रक पर पड़ा, जो उस घुमावदार टर्निंग पर मुड़ रहा था, उसके सामने की काँच पर धूप पड़ा ही था जिस कारण वह अदृश्य चिन्ह पलभर को चमका। ट्रक की दिशा कैम्पटी फाल्स की तरफ थी, यह देखकर अरुण हैरान हुआ क्योंकि इस ट्रक पर भी सेम वही निशान बने हुए थे जो अब तक के बाकी के वाहनों पर मिले, वहां उसी ट्रक के भांति दो-चार और ट्रक दिखाई दे रहे थे।
"यकीन नहीं होता, इस ब्लैंक के ट्रक यहां भी चल रहे हैं, आखिर इस जंगल में इन्हें ऐसा क्या हासिल होगा? ऐसा क्या है जिसके लिए इतने बेगुनाहों की बलि चढ़ाई गयी। खबरदार ब्लैंक! तेरी मौत जल्द ही तेरे पास आ रही है।" अगले ही पल अरुण ट्रक की दिशा में नीचे कूद गया। पेडों की डालियों से टकराते हुए वह बहुत तेजी से नीचे गिरता जा रहा था, दर्द तो उसे बहुत हो रहा था मगर चेहरे पर एक शैतानी मुस्कुराहट थमी हुई थी।
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ढाबे पर
"सर बिल!" वेटर ने अनि को बिल की पर्ची थमाते हुए कहा।
"हाँ तो इसमें मैं क्या करूँ? बिल बनाना है तो चूहा पकड़ो!" अनि ने भौंहे तिरछी करते हुए उसकी ओर देखा।
"वो बिल नहीं सर आपने जो खाया-पिया है उसका बिल!" वेटर ने किसी तरह खुद को सामान्य रखते हुए कहा।
"तो ऐसे बोलना था न! रुको अभी एक मिनट!" अनि ने वेटर को घूरते हुए अपना हाथ पर्स की ओर बढ़ाया, तभी उसका फोन घनघनाने लगा। "अं..! रुको एक मिनट!" अनि ने हाथ से इशारा कर बोलते हुए अपना फोन निकाला, जिस व्यक्ति का कॉल आया वह देखकर अनि की आँखे फैल गयी वह बुरी तरह घबराया हुआ एक ओर भागा।
"क्या हुआ सर!" वेटर ने उससे पूछा।
"कुछ नहीं बस एक बात बताओ आज सूरज पश्चिम से उगा है क्या?" अनि ने जोर जोर से हांफते हुए पूछा। उसका फ़ोन अब भी रिंग कर रहा था।
"नहीं सर मगर आप ऐसा क्यों पूछ रहे हैं?" वेटर को आज बस हैरानी हुई जा रही थी।
"पक्का पश्चिम से नहीं उगा है न?" अनि ने दुबारा सवाल किया, उसकी मुद्रा ऐसी थी मानो वह जीवन मरण के बीच फंसा हुआ है और वह वेटर ही उसका तारणहार है।
"नहीं सर! सूरज रोज पूरब से ही उगता है।" उसने खीझते हुए जवाब दिया।
"अच्छा ठीक है तुम कहते हो तो मान लेता हूँ!" कहते हुए अनि ने झट से फोन रिसीव किया।
"हेलो पप्पा जी पाए लागों! मैं थोड़ा बिजी हूँ, खाना खाकर थक गया हूँ। बाद में बात करता हूँ।" अनि एक ही सांस में सटासट बोलता गया।
"अनिरुद्ध! बचपना बन्द करो!" उसके पापा खीझ गए, मगर आज वे बहुत गम्भीर नजर आ रहे थे। जिस तरह उन्होंने अनि को लताड़ा था उसके बाद अनि को उम्मीद न थी कि एक दिन बीतते ही कॉल करेंगे।
"जी पप्पा जी! जैसा आप कहो! आपका राजा बेटा यानी सड़क पर बैठा यह भिखारी, आपकी हर बात सुनेगा।" अनि मासूम सा चेहरा बनाते हुए बोला, अनि का अपने पापा से ऐसे बात करते सुन वेटर का सिर चकराने लगा था।
"अनि! पियूषा तुम्हारे पास है?" उसके पापा का स्वर उभरा।
"क्या?"यह सुनते ही अनि उछल पड़ा। "नहीं, वह तो आपके पास होगी न!" अनि ने रोनी सूरत बनाते हुए बोला।
"कल रात वह बाहर गयी थी तभी से वह नहीं लौटी, देहरादून में कर्फ्यू लगा हुआ है, उसका कॉल भी नहीं लग रहा है।" उसके पापा चिंतित स्वर में बोले।
"आप चिंता मत करिए पप्पा श्री! आपकी प्यारी दुलारी बिटिया बहुत समझमार है, उसके कुछ नहीं होगा।" अनि बेतुके अंदाज से बोला।
"बस इसीलिए इस लड़के से बात करने का जी नहीं होता!" उसके पापा का उदास स्वर उभरा, अगले ही पल फोन कट गया।
'ये लड़की कहाँ गायब हो गयी!' अनि के मन में सवाल घूमने लगे, वह तेजी से बाहर की ओर भागा।
"सर बिल!" वह वेटर चिल्लाया।
"अगली बार जब आऊंगा तो पूरा बिल ले लेना, अभी थोड़ा आराम करना है।" कहते ही अनि क्रेकर पर सवार हो गया।
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ब्लैंक का गुप्त ठिकाना!
चारों तरह हल्की नीली बत्तियां जल रहीं थी, यह कोई बड़ा सा तहखाना नजर आता था, चारों ओर लौह मिश्रित मजबूत स्तम्भ थे, हरेक स्तम्भ के पास एक-एक हथियारबंद नकबपोश शख्स खड़े थे। एक ऊँचे विशाल आसन पर बैठा ब्लैंक जोर जोर से ठहाका लगा रहा था।
"हाहाहाहा.. आखिर अब हम अपने मकसद के बिल्कुल पास पहुंच चुके हैं। अब सारी दुनिया पर हम राज करेंगे हाहाहा!"
"हाहाहा.. अब हम कामयाब होने वाले हैं, इतने दिन की मेहनत और दी गयी कुर्बानियां यूँ ही जाया नहीं होंगी। अब हमारा मकसद पूरा होने से कोई नहीं रोक सकता।" उसकी अठ्ठाहस वहां चारों ओर गूंज रही थी, उसकी खुशी से जाहिर हो रहा था कि वह जो कुछ भी चाहता था उसे हासिल होने ही वाला था।
क्रमशः….!!
Seema Priyadarshini sahay
29-Nov-2021 04:33 PM
बहुत खूबसूरत कहानी
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Swati chourasia
18-Nov-2021 09:12 PM
Very nice 👌
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🤫
18-Nov-2021 07:42 PM
बेहतरीन...
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